गुरुवार, 18 जून 2015

''एकला चलो रे ...!!! ''

'' एकला चलो रे...'' 
करीब चार बरस पहले जब शुरू में फेसबुक पर आई तो मकसद था अपने स्कूल के कॉलेज के दोस्तों को ढूँढना क्योंकि सुना था यह एक अथाह समुन्दर है दोस्तों का..... यहाँ हर प्रान्त हर वर्ग ,हर जात, हर भाषा, हर देश के लोग जुड़े हुए हैं और यहाँ किसी भी मीलों दूर बैठे व्यक्ति से झट से संपर्क कर सकते हैं तो सीधी सी बात थी अपना भी इसके प्रति मोह जागना स्वाभाविक ही था क्योंकि मेरे पंजाब से दिल्ली चले आने के बाद सबसे संपर्क समाप्त सा हो गया था ।
यहाँ हर कोई दोस्त ही कहलाता है चाहे भाई हो या भाभी बेटा हो या बेटी,मौसा मौसी चाचा चाची  अपना हो या पराया हर रिश्ता दोस्ती में बदल जाता है .....  उसमें से कुछ दोस्त आपको अपनेपन की उन ऊँचाइयों तक ले जाते हैं जो आपने अपने खून के रिश्तों में भी महसूस नहीं की होगी । मीलों दूर बैठे हुए भी हर सुख दुःख में आपके साथ खड़े ना होकर भी खड़े होते हैं आपकी केयर करते हैं हर पल ...
धीरे धीरे उनकी ऐसी आदत लगती है आपको कि उनके बिना आपका जीवन अधूरा सा लगता है अगर सही शब्दों में कहें तो आपको उनकी लत्त लग जाती है अब उनके बिना आपका हर फैसला अधूरा लगता है जिन्होंने  समय समय पर  उत्साह बढ़ा कर आपका हौंसला बढ़ाया हो ,उचित मार्गदर्शन किया हो या यूँ कहें की आपके हौंसलों की उड़ान उन्हीं से होने लगती है , आपके साथ बतियाने का थोड़ा सा समय वो निकाल ही लेते हैं यहाँ अपनेपन की जरुरत होती है वो पूरी निष्ठा से निभा जाते हैं ,..... सिवाए कुछ लोगों के जो फेसबुक पर दोस्ती का गलत इस्तेमाल करते हैं अपना परिचय भी छुपा कर रखते हैं ... वास्तव में इन लोगों से भी आपको आपके अपने दोस्त ही बचाते हैं ....
कुछ लोगों से आपकी नजदीकियाँ बढ़ती हैं तो वो रिश्तों में बदलने लगती हैं कोई भाई ,कोई बहन ,कोई जीजा, कोई देवर ,कोई बेटा कोई बेटी ... आदि आदि बन जाते हैं कुछ सच्चे दोस्त बन जिंदगी भर हर सुख दुःख में आपके साथ खड़े होने का दावा करते हैं आपसे घंटों बतियाते हैं आपके साथ सब कुछ साँझा करते हैं तब शायद उनकी मजबूरी होती है उनका अकेलापन जिसे वो आपके साथ बाँटना चाहते हैं या आपसे सच्ची हमदर्दी ... राम जाने !!
यह सच्ची निष्ठा निभा कितने पाते हैं यह तो समय ही बताता है ऐसे ही नही कहा गया समय बहुत बलवान है ... एक पल आपकी पूरी जिंदगी बदल देता है ... कोई आपसे यह कह कर दूर चला जाता है कि आप इतने अच्छे क्यों हो ? कोई यह कह कर कि आप को समय के साथ बदलना चाहिए आगे बढ़ना चाहिए किसी भी कीमत पर ... कोई कहता है उसके पास समय नहीं कहानियाँ कहने का जिसने  पहले हर  बात पूछने  बताने का ठेका लिया होता है आपकी हर पल केयर की होती है  .. यह सिर्फ वही कर सकते हैं जो दावा करते थे ना बदलने का पर बदल जाते हैं जो आपके हौंसलों की उड़ान थे कभी आज वोही आपके पर कुतर रहे हैं ...कंधे से कँधा मिला साथ खड़े थे कभी आज आपकी टाँग खींचने में लगे हैं ... कई कहते हैं मैं ऐसा नहीं मेरे कंधे बहुत मजबूत हैं हमेशा आपका सहारा बनेंगे .... किसी को लोगों की परवाह है तो किसी को अपनी , कभी भी किसी की भी अंतरात्मा मर सकती है ... इस इंटरनेट की दुनिया से जो सही में मोहजाल से कम नहीं आपका मोह भंग होते हुए भी मोह भंग नहीं हो पाता है । बिल्कुल इस मायावी दुनिया की तरह यहाँ ना चाहते हुए भी कई रिश्ते निभाने पड़ते हैं मायाजाल बुनना पड़ता है ... यहाँ हर कोई अकेला आता है और अकेला ही उसे जाना है भीड़ में भी वो खुद को अकेला ही पाता है  .... 
 रविन्द्र नाथ टैगोर की पँक्तियाँ याद आ रही हैं......"जोड़ी तोर दक शुने केऊ ना ऐसे तबे एकला चलो " [यदि आपकी बात का कोई उत्तर नहीं देता है, तब अपने ही तरीके से अकेले चलो".......'' एकला चलो रे ... ''
सुन के तेरी पुकार सँग चलने को तेरे कोई हो ना हो तैयार 
चल चला चल अकेले चल चला चल .....
जिन दोस्तों ने मेरी मुश्किल घड़ी में मेरा जितना भी जैसे भी साथ दिया उसके लिये तहदिल से आभारी हूँ और हमेशा आभारी रहूँगी । वो यह कभी ना सोचें कि अब मैंने उनका साथ छोड़ दिया क्योंकि उन्होंने मेरा साथ छोड़ दिया था किसी भी मजबूरीवश ... कुछ जो कह कर साथ छोड़ गए कुछ चुपचाप बिना कुछ कहे ही ... वो मुझे वैसे ही हमेशा अपने साथ खड़े पायेंगे जब भी आवाज लगायेंगे  नजरंदाज करते हुए उनके किसी भी व्यवहार को जो उन्होंने शायद किसी मजबूरीवश किया हो मेरे साथ ...
किसी ने सही कहा है ... 
मरने पर तो चार कंधे झट से मिल जाते हैं जीते जी एक के लिए तरस जाते हैं....  तो यारो किसी का कन्धा बन सको तो जरूर बनना ।किसी की ताकत बन सको तो जरूर बनना ..कमजोरी कभी मत बनना ... यह अन्दर तक घायल कर जाती है जिसकी मरहम उनके सिवा फिर कोई नहीं बन सकता ...  
मुझे अभी भी विश्वास है खुद पर ....
मैं इतनी भी बुरी नहीं हूँ ... इतनी भी कमजोर नहीं हूँ ... चल सकती हूँ अकेले ... बस आप लोगों के अपनेपन ने निकम्मा कर दिया वर्ना इन्सां तो हम भी काम के थे यारो .... जिंदगी का सफ़र तो अकेले तय कर लूँगी लेकिन शमशान तक अकेले ना जा सकूँगी ... अब नहीं तो तब चले आना यारो .... 

..................................   सरिता भाटिया 

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