शनिवार, 9 मई 2015

माँ

माँ में तेरी प्रार्थना ,माँ में समझ अजान 
माँ में बसता है खुदा, माँ में है भगवान ||
माँ में गीता है बसी ,माँ में बसा कुरान  
माँ में सारे धर्म हैं ,माँ में सब भगवान ||


माँ एक विशाल शब्द है जिसकी व्याख्या कर पाना मेरे लिए संभव तो नहीं पर एक कोशिश जरुर की है माँ शब्द को सम्मान देने की |
माँ .. जिसमें दुनिया के हर भाव का अर्थ समहित है ....
माँ आकाश की ऊँचाई है ,माँ समुद्र की गहराई है ...
माँ एक स्नेह्मई स्पर्श है ,
माँ उदारता है , माँ अनंत हर्ष है ...
माँ उंगली पकड़ कर सिखाती  गुरू है ...
माँ जीवन राह पर हाथ थामे चलती दोस्त है ..
माँ  भगवान का ही रूप है ,वह फ़रिश्ता है ...
माँ त्याग है ,माँ समर्पण है... 
माँ  प्यार है ,  माँ दुलार है ...
माँ के आँचल में दुनिया का हर सुकून है ...
माँ ममता भरा आशीर्वाद है ...
माँ  अहसास है ,माँ विश्वास है ...
नाजुक क्षणों में माँ एक सहारा है .... 
माँ प्रार्थना है ,माँ अजान है..
माँ गीता है ,माँ कुरान है ...
माँ सर्वगुण संपन्न भगवान का भेजा फ़रिश्ता है ,कुछ और दोहे मैंने माँ को समर्पित किये हैं 
माँ समझे तेरी ख़ुशी, माँ ही समझे पीर 
माँ के नैनों से बहे, केवल ममता नीर ||
माँ का हँसता चेहरा, ह्रदय भरे उल्लास 
माँ की ममता से सदा, बढ़ता है विश्वास ||

मैं एक बेटी हूँ तो अपने घर में सबको परोसने के बाद खाना खाते खाते ठंडा हो ही जाता है .. शादी के बाद अब जब भी मायके जाती हूँ एक बात जो हमेशा याद आती है .. माँ हमेशा गर्म गर्म खाना परोसती है जिसका स्वाद कभी नहीं भूलता ... 

फूली फूली रोटियाँ ,माँ की आयें याद 
नरम गर्म सी रोटियाँ मायके जाने बाद |.... सरिता भाटिया 

मुनव्वर राणा की माँ से ओतप्रोत लेखनी को कौन नहीं जानता , माँ के बारे लिखे एक एक शब्द से माँ के अहसासों की खुशबु आती है ,अहसासों को समेटे मुनव्वर जी के कुछ शेर .... 
मेरी ख़्वाहिश है कि मैं फिर से फ़रिश्ता हो जाऊँ
माँ से इस तरह लिपट जाऊँ कि बच्चा हो जाऊँ
मैंने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आँसू
मुद्दतों माँ ने नहीं धोया दुपट्टा अपना
बच्चों की गलती पर भी अपना गुस्सा माँ बच्चों पर न उतार कर खुद ही उस पीड़ा को जी लेती है  
इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है
माँ बहुत ग़ुस्से में होती है तो रो देती है
जो माँ से दूर होते हैं उनको माँ के हाथों की खुशबु वाकई हर पकवान में आती है बशीर बद्र ने क्या खूब कहा है 
बेसन की सोंधी रोटी पर, खट्टी चटनी जैसी माँ
याद आती है चौका, बासन, चिमटा, फूंकनी जैसी माँ
माँ खुदा की रहमत है इसके बिना यह संसार असंभव सा लगता है .... 

लेखिका ..सरिता भाटिया 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें